Friday, February 8, 2019

मॉब लींचिंग, मनी लॉन्ड्रिग, नेपोटिज्म और हम

देश के उन सभी सक्रिय नेताओं, अभिनेताओं और न्यूजमेकर्स का धन्यवाद जिनके जाने-अंजाने कृत्यों की वजह से हमें रोज रोज नए शब्द सीखने को मिल रहे हैं।



सर्जिकल स्ट्राइक, मनी लॉन्ड्रिग, नेपाेटिज्म (भाई भतीजावाद), मॉब लींचिंग, चिटफंड, क्राउड फंडिंग, एडम टीजिंग, रेसिज्म, डिमोनेटाइजेशन, डोपिंग आदि आदि। भला हो इन न्यूजमेकर्स का जिन्होंने अंग्रेजी अखबारों में काम कर रहे मेरे भाइयों को रोजगार दे रखा है। ये रोज कोई नया कांड करते हैं और अखबार-मीडिया के लोगों को उसे कवर करने के लिए नया शब्द खोजना पड़ता है। शर्तिया यह कोई आसान काम नहीं है। 

शायद नेताओं में भ्रष्टाचार के नए-नए रिकॉर्ड बनाते समय यह विचार भी मन में रहता हो- अरे ये नहीं, कुछ नया करो... ये तो लालू जी कर चुके। अरे भई कोई भारी-भरकम नाम होना होना चाहिए। 

कल ही बॉलीवुड की मणिकर्णिका यानि झांसी की रानी ने भारतीय सिनेमा में नेपोटिज्म के खिलाफ मुहिम छेड़ने का अपना एलान दोहराया। यानि नए शब्द निकालने में हमारा बॉलीवुड भी पीछे नहीं है। देखा जाए तो सिनेमा और टीवी तो पॉलिटिशयन को लीड ही कर रहा है।

थोड़ा इतिहास में जाएं तो 1994 में दूरदर्शन ने डेली सोप्स का कंसेप्ट शुरू किया था। तब दूसरे चैनल इतने प्रचलित या यूं कहें सबकी पहुंच में नहीं थे। बस... तभी से हमारे सर्वहारा समाज को नए-नए शब्द मिलने शुरू हो गए थे। असल में हमें पता चला- अच्छा, हमारे घर-परिवार-समाज में ये सब भी होता है। यानि पोस्ट और प्री मैरिटल अफेयर्स, डीएनए टेस्ट, अबॉर्शन, मिलियन और बिलियन पाउंड आदि-आदि।

दूरदर्शन पर उस जमाने में 780 एपिसोडस के साथ सबसे लोकप्रिय सीरियल शांति का तो प्लॉट ही नाजायज संतान पर आधारित था। इसके बाद इतिहास, स्वाभिमान जैसे कई सीरियल्स भी आए और दोपहर को पूरे घर का काम करने के बाद शांति से सोने वाली हमारी मां, चाचियां, ताइयां, मामियां और भाभियां अब अशांति से इन्हें देखने लगीं। कोई क्राइम के आंकड़ों में सिद्धहस्त साथी अगर रिसर्च करे तो उसे मिलेगा कि शायद घरेलू हिंसा और अलगाव के बहुत से मामलों में इन वर्षों में तगड़ा इजाफा आया हो।

बहरहाल... अब मुद्दे पर आते हैं। शब्दों की इस फैक्ट्री से आने वाले सारे शब्दों को एक जैसा ट्रीटमेंट नहीं मिलता। यानि कुछ शब्दों की उम्र ज्यादा नहीं होती। ये शब्द आते हैं और एक दो दिन ध्यान आर्कषित करने के बाद खो जाते हैं।

जैसे डिवलपमेंट, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, हैप्पीनेस इंडक्स, स्टारवेशन (भुखमरी), सोशल इनजस्टिस, फार्मर सुसाइड, इव टीजिंग, रैगिंग, चाइल्ड अब्यूजिंग आदि आदि। पता नहीं क्यों इन शब्दों पर ज्यादा दिन तक कोई बात नहीं करता। असल में जल्दी से कोई बात ही नहीं करता। देश में क्राइम या भ्रष्टाचार में हमारा कौनसा नंबर है, इसके बारे में सत्ता पक्ष से ज्यादा रिसर्च विपक्ष करता है। लेकिन इसका समाधान क्या है इसपर कोई बात नहीं होती।

इसलिए देश को नए नए शब्दों का ज्ञान लाभ देने वाले हे न्यूजमेकर्स... हम पर दया कीजिए। हमें समस्याओं को परिभाषित करने वाले नए-नए शब्द नहीं, उनके समाधान चाहिए। अगर आपके पास हैं तो दे दीजिए। वरना प्लीज हमारे धूल, धुंए, ट्रैफिक, पॉल्यूशन, गड्‌ढे वाली सड़कों से थके दिल, दिमाग और शरीर को और तनाव मत दीजिए।


0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home