Thursday, April 2, 2015

हम...
यानि हम लोग... वी, द पीपल...यानि कौन?


हम हमेशा बदलते रहते हैं.
जगह, मौके, अवसर, समय, स्थान आदि के अनुसार. सफर में मुसाफिर, तीर्थ में तीर्थयात्री, मंच के सामने बैठे तो दर्शक, मंच पर हुए तो परफाॅर्मर, सुन रहें हैं तो श्रोता, बोल रहें हैं तो वक्ता, कुछ कर रहे हैं तो कर्ता, नहीं कर रहे तो भीड़, नियम में रहें तो नागरिक, नियम तोड़ दें तो अपराधी, केस चल रहा है तो मुल्जिम, आरोप सािबत हुआ तो मुजरिम, फिर सजायाफ्ता, बेघर हैं तो शरणार्थी, धरने पर हैं तो धरनार्थी, पढ़ रहें हैं तो विद्यार्थी, पढ़ा रहे हैं शिक्षार्थी, जिंदा हैं तो इंसान, मर गए तो अर्थी... यानी पैदा होने से मरने तक हम हमेशा किसी न किसी वर्ग की तरह पुकारे जाते हैं.

हम... यानि वी द पीपल बहुत सारी खुली किताबों जैसे हैं. हर आदमी अपने आप में एक कहानी, एक हीरो, एक मिसाल की तरह है जो चाहता है कि उसे, बस उसे ही सुना, पढ़ा, कहा और समझा जाए... लेकिन इसके लिए वो क्या कहे, लिखे और समझाए... ये किसी को नहीं पता. कोई रिक्शेवाला भी फुर्सत में हो तो आपको बड़ी शानदार कहानियां सुनाएगा... परिवार के लिए दी अपनी कुर्बानियों की, अपनी जिंदगी की और जाने क्या-क्या...क्योंकि उसकी जिंदगी में उससे बड़ा हीरो उसे कोई मिला ही नहीं...

हम...यानि वी द पीपल...हमारी सबसे बड़ी समस्या हम खुद ही हैं... सुनकर अटपटा जरूर लगेगा... लेकिन सच यही है. हमें सुधरी हुई साफ सुथरी दुनिया चाहिए. लेकिन हमें गंदे रहने पर कोई न टोके. हमें करप्शन से मुक्ति चाहिए, लेकिन हम न घूस देना छोड़ेंगे न लेना. हमें अपनी बहन-बेटियां सुरक्षित चाहिएं, भले ही पास से निकलती षोड़शी को हम कितनी भी बुरी तरह ताड़ें. हमें भगतसिंह चाहिए, लेकिन पड़ोसी के घर में. हमें सुबह के अखबार से रात की काॅफी तक सारी चीजें टाइम पर चाहिए, भले ही हम रोज आॅफिस लेट जाते हों. हमें सारे राइट्स चाहिएं, भले ही ड्यूटीज का डी भी हम भूल चुके हों. हमें सड़क पर ट्रैफिक सेंस चाहिए, भले ही हमने हेलमेट तक न लगाया हो. पूरा देश हमारे लिए सुधर जाए और हमें करवट भी न बदलनी पड़े.

हम...यानि वी द पीपल... थोड़े अजीब भी हैं. थोड़े नहीं बहुत अजीब. दरवाजे पर वेलकम का डोर स्टेप रखते हैं और चौखट के पीछे बांस का लट्‌ठ. हमारे पास हर समस्या का समाधान होता है, बस समस्या दूसरे की होनी चाहिए. हमें खुद नहीं पता कि हम किस बात से ज्यादा परेशान हैं...इंडिया के मैच हारने से या पड़ोसी के नए बड़े एलईडी से. हम अखबार की कीमत 25 पैसे बढ़ने पर बेचैन हो जाते हैं लेकिन सिगरेट किसी भी दाम पर खरीद कर फूंक सकते हैं. हम 3500 रुपए के जूते खरीद सकते हैं, 200 रुपए की किताब नहीं. हमें अपने महीनों से बेकार पड़े हेलमेट या ट्रैवल बैग को तब बहुत मिस करते है जब पड़ोसी उसे दो दिन के लिए मांग कर ले जाता है.

हम... यानि वी द पीपल...बहुत बड़े आविष्कारक हैं...लेकिन जुगाड़ के. मोबाइल किसी ने भी बनाया हो, मिस कॉल हमने बनाई है. घड़ी किसी ने भी बनाई हो, इंडियन स्टैडंर्ड टाइम यानि फिक्स टाइम से एक-दो घंटे  लेट पहुंचने का ठप्पा हमने बनाया है.

हमारे बारे में और बहुत कुछ... अगली बार.

1 Comments:

At January 28, 2022 at 1:38 PM , Anonymous Anonymous said...

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