Tuesday, January 1, 2019

मां...एक मुकम्मल दुनिया की विदाई...

3 दिसंबर 2018... सुबह के नौ बजे। मेरी मां मुझे हमेशा के लिए छोड़कर चली गई। एक पूरी दुनिया थी जो उसके साथ ही चली गई। मेरे जीवन में ऐसा कोई पल शायद ही हो जिसमें मेरी मां नहीं होती थी। पर वो चली गई। अब...

तमाम दुनियावी संस्कार करने थे। सो किए। 14 दिन अपने पैतृक गांव रहा जहां परिवार और भाइयों ने सभी कार्यों में भरपूर सहयोग किया। उन्हीं के कारण मरणोपरांत होने वाली मेरी मां की सारी क्रियाएं संपन्न हो पाईं और 15 दिसंबर को मैं जयपुर, घर आ गया।


पर घर तो अब पहले जैसा नहीं रहा। ये तो पूरा बदल गया है। कहने को मां अपनी चारपाई पर सिमटी लेटी रहती थी। लेकिन वो तो हर जगह थी। धूप, हवा, मंदिर से आती अगरबत्ती की खूश्बू की तरह हर जगह पूरे घर में। सुबह की पहली चाय और अखबार पढ़ते वक्त चल रही बातचीत में, नहाने के लिए पड़ रही डांट में, "अभी तक फल नहीं खाए... इसीलिए तो इतना कमजोर हो गया है" वाले उलाहने में, "खाना खाते वक्त तो फोन छोड़ दिया कर" वाली सीख में, बेटे को ज्यादा डांटने पर मेरी ही खिंचाई में, ऑफिस में आए फोन और एक मिनट बात करने के बाद "आवाज नहीं आ रही, घर आके बात करना" वाली अनदेखी में और रात को अनवरत आठ साल से बिना डोरबेल बजाए बाइक या कार की आवाज सुनते ही अपने आप खुलते दरवाजे में.... मां तो हर बात में थी। और अब तो लगता है कि ये घर नहीं मां की गोद ही था... जो अब काटने को दौड़ रहा है।

यहां आने के दो-चार दिन तक तो लगता रहा कि मां कहीं गई है... आ जाएगी। क्योंकि वो अक्सर जाती थी। लेकिन लौटकर आने के लिए। इस बार वो नहीं आई। अपने हाथों से उसके सारे अंतिम कार्य कर चुका हूं लेकिन यकीन नहीं आ रहा कि मां नहीं आएगी।

रिश्तेदारों की औपचारिकताएं धीरे-धीरे पूरी हो रही हैं। परिजन लगातार फोन पर "बच्चों और पिताजी का ख्याल रखना" कि हिदायतें दे रहे हैं। लेकिन अब बहुत कुछ है जो बदल गया है... मां के नहीं रहने से बिना किसी इत्तला के मैं बड़ा हो गया हूं। क्योंकि बच्चा तो सिर्फ मां के लिए था। पिता तो कब से कहते आ रहे हैं- अपने जूते का साइज एक हो गया है... अब बेटा नहीं दोस्त है तू। लेकिन मां के लिए ऐसी कोई कहावत नहीं बनीं। मां के लिए मैं ताउम्र बच्चा ही रहा। तभी तो मिलती थीं घर से निकलते वक्त ध्यान से जाना कि हिदायत, बाहर होने पर खाना वक्त पर खा लेना की नसीहत, सर्दी में कंबल, गर्मी में ठंडा दूध, बीमार होने पर दुआ-दवा, दुनियादारी सिखाने की सलाह, पैसे बचाने की कला, हर त्योहार के सारे चाव, हर व्रत-पूजा पाठ के नियम, बच्चों की प्यारी गोद, मेरी या उनकी मां की हर डांट से आगे खड़ी मजबूत ढाल... सब मां ही तो थी।

ये तमात नसीहतें, हिदायतें, सहारा, किनारा, ढाल... सब तुम ही तो थी मां...


1 Comments:

At January 2, 2019 at 7:47 PM , Blogger Umang said...

नमन💐

 

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